Wednesday 18 September 2013

फ़ुटबाल_और कितने नीचे

                      12 सितम्बर को जब अर्जेंटीना ,इटली ,हालैंड ,अमेरिका और कोस्टारिका जैसी टीमें 2014  के विश्व कप फुटबाल के लिए क्वालीफाई कर रही थीं उसी समय काठमांडू नेपाल के दशरथ रंगशाला स्टेडियम में भारतीय फ़ुटबाल की दुर्दशा की  एक और इबारत लिखी जा रही थी। सैफ फ़ुटबाल टूर्नामेंट के फाइनल में अफगानिस्तान ने भारत को 2 -0 से हरा दिया।  दो साल पहले भारत ने अफगानिस्तान को 4 -0 से हरा कर ये टूर्नामेंट जीता था। इस क्षेत्रीय टूर्नामेंट में विश्व की एकदम निचली रैंक वाली टीमें भाग लेती हैं।इस पूरे टूर्नामेंट में  भारत का बहुत ही लचर प्रदर्शन रहा। लीग स्टेज में पाकिस्तान को 1-0 से हराया,बांग्लादेश से 1-1 से ड्रा खेला,और नेपाल से 1-2 से हारी। किसी तरह सेमीफाइनल में पहुँची जहाँ मालदीव को 1-0 से हराया।
        दक्षिण एशियाई देशों के इस टूर्नामेंट में भाग लेने वालों देशों में भारत सबसे बड़ा और सबसे अधिक संसाधनों वाला देश है। लेकिन सीमित संसाधनों वाले इन छोटे देशों ने भारत की अपेक्षाकृत बेहतरीन फुटबाल खेली। विशेष तौर पर अफगानिस्तान की तारीफ करनी होगी जिसने सीमित संसाधनों और आतंकवाद से जूझते हुए भी शानदार खेल का प्रदर्शन किया और पिछले दो तीन सालों में खेलों में शानदार प्रगति की। टूर्नामेंट से पहले उसकी फीफा रैंकिंग 139 थी जबकि भारत की रैंकिंग 145 थी। अफगानिस्तान टीम के कम से कम 7 खिलाडी जर्मनी और अमेरिका की निचली फुटबॉल लीग में  खेलते हैं। ये बात काबिलेतारीफ़ है कि अफगानिस्तान इन परिस्थितियों में भी खेलों में इतनी प्रगति कर रहा है। इस हार के बाद फीफा रैंकिंग में भारत 10 स्थान नीचे खिसक कर 155 वें और अफगानिस्तान 7 स्थान ऊपर चढ़ कर 132 वें स्थान पर आ गया है।
      भारतीय फुटबॉल की ऐसी स्थिति हमेशा नहीं थी। हॉकी की तरह फ़ुटबाल का भी एक  स्वर्णिम इतिहास रहा है।भले ही वो हॉकी जितना चमकदार ना हो। ये समय है 1948 से 1964 तक का। 1948 का लन्दन ओलिंपिक। पहली बड़ी प्रतियोगिता थी जिसमें भारत ने भाग लिया। यहाँ उनका मुकाबला फ्रांस से था। वे 1-2 से मैच हारे जरूर । पर दर्शकों का दिल जीत लिया। ज्यादातर खिलाडी नंगे पैरों से खेल रहे थे। पर शानदार खेल दिखाया। यदि उन्होंने दो पेनाल्टी को गोल में तब्दील कर दिया होता तो कहानी कुछ और होती। इसी समय सैयद अब्दुल रहीम भारतीय फ़ुटबाल परिदृश्य पर उभरते हैं। कोच के रूप में उन्होंने भारतीय फुटबॉल को नई ऊँचाई तक पहुँचाया। 1951 में पहले एशियाई खेल नई दिल्ली में आयोजित किये गए। यहाँ टीम ने स्वर्ण पदक जीता। क्वार्टर फाइनल में इंडोनेशिया को 3-0 से और सेमी फाइनल में अफगानिस्तान को 3-0 से हराया। फाइनल में ईरान को 1-0 हराकर स्वर्ण पदक जीता। मेवालाल साहू जीत के नायक रहे। उन्होंने सर्वाधिक 4 गोल दागे। लईक, वेंकटेश ,अब्दुल लतीफ़ और मन्ना टीम के अन्य सितारे थे। इसके बाद भारतीय फुटबाल की एक नई गाथा लिखी जानी थी। सन 1956 मोंट्रियाल ओलिंपिक। पहला मैच - हंगरी से वॉक ओवर मिला। दूसरा मैच क्वार्टर फाइनल। मेजबान ऑस्ट्रेलिया को 4-2 से हराया। नेविल डीसूजा मैच के हीरो - हैट ट्रिक बनाने वाले पहले एशियन बने और इस तरह ओलिंपिक फुटबॉल के सेमी फाइनल में पहुँचने वाली पहली एशियाई टीम बनी। सेमी फाइनल यूगोस्लाविया से। पहला हाफ गॉल रहित। दूसरा हाफ - 55वें मिनट में नेविल डिसूजा ने भारत को बढ़त दिलाई। पर इस बढ़त को कायम न रख सके। अंततः 4-1 से हारे। प्ले ऑफ मैच में बुल्गारिया से 3-0 से हारे और चौथा स्थान प्राप्त किया। 1951 के बाद 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में भारतीय खिलाडियों ने शानदार खेल दिखाया और पुनः स्वर्ण पदक जीता। हाँलाकि लीग स्टेज में साउथ कोरिया से 0-2 से हारे पर थाईलैंड को 4-1 से और जापान को 2-0 से हरा कर सेमी फाइनल में प्रवेश किया जहाँ साउथ विएतनाम को 3-2 से हराया। फाइनल में साउथ कोरिया को 2-1 से हरा कर न केवल स्वर्ण पदक जीता बल्कि लीग में हार का बदला भी ले लिया। इसके बाद साल 1964 तीसरा  ए.एफ.सी.एशियन कप इस्रायल में आयोजित हुआ। यहाँ रजत पदक जीता। चुन्नी गोस्वामी, इन्दर सिंह और सुकुमार जैसे खिलाड़ी इस टीम के सदस्य थे। यहीं से भारतीय फुटबॉल के पतन की कहानी शुरू होती है जो सितम्बर 2012 में चरम पर पहुँच गयी जब भारत फीफा रैंकिंग में 169वें स्थान पर आ गया। 1964 में रजत पदक जीतने के बाद केवल दो बार  ए.एफ.सी.एशियन कप के बमुश्किल क्वालीफाई कर सकी 1984 और 2011 में। जबकि एशियाई खेलों में1982 में नई दिल्ली  में क्वार्टर फाइनल तक पँहुचे। इसके अतिरिक्त और कोई बड़ी उपलब्धि भारतीय फुटबॉल की नहीं है।
                भारत में फुटबॉल की खराब होती स्थिति को सुधारने के कुछ प्रयास भी हुए। पर कोई विशेष नतीजा नहीं निकला। 1982 में एक अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट नेहरु कप शुरू किया गया  जो अभी तक जारी है। हाँलाकि ये 1998  से 2006 तक स्थगित रहा। 1987 में टाटा स्टील ने जमशेदपुर में टाटा फुटबॉल अकादमी शुरू की। आल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने भी गोवा ,मुंबई और कोलकाता में तीन रीजनल फुटबॉल अकादमी और गोवा में एक इलीट फुटबॉल अकादमी स्थापित की है। 1996 में ए.आई.एफ.एफ. ने पहली  फुटबॉल लीग शुरू की।  2006 में  इसे समाप्त कर आई लीग की स्थापना की गयी। आई लीग में टॉप 14 टीम खेलती हैं। हर साल अंतिम दो टीम आई लीग (डिवीज़न दो) में आ जाती हैं और डिवीज़न दो की 21 टीमों में से टॉप दो टीम आई लीग में शामिल हो जाती हैं। इसी साल ए.आई.एफ.एफ. आई पी एल की तरह की एक और लीग शुरू करने जा रही है। विदेशी कोच भी नियुक्त किये गए। 2002 से 2005 तक स्टीफेन कांतेस्ताइन ,2006 से 2011 तक बॉब होटन और 2012 में विम कोवरमेंस कोच बने। लेकिन इन प्रयासों का कोई नतीज़ा निकलता दिखाई दे रहा है। स्थिति जस की तस बनी हुई है। 

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