Friday 14 April 2017

मोको कहां ढूंढे रे


मोको कहाँ ढूंढे रे 
------------------- 

'मैं इक परछाई हूँ 
या हूँ छलावा 
या हूँ कुछ भरम सा'
ये मानना ही भरम है तुम्हारा
दरअसल 
तुम ढूंढ रही हो बाहर  
कुछ ठोस ठोस सा 
और मैं हूँ तुम्हारे भीतर 
तरल तरल सा 

जैसे होती है बारिश में आर्द्रता 
मैं हूँ तुम्हारे मन में गीलेपन सा 
जैसे होता है आग में ताप  
मैं हूँ तुम्हारे प्यार में उष्मा सा 
जैसे होती है चांदनी में शीतलता
मैं हूँ तुम्हारी आहों में ठिठुरन सा  
जैसे होते हैं किताबों में फ़लसफ़े 
मैं हूँ तुम्हारे दिल में ख्यालों सा 
जैसे होती है माटी में उर्वरता 
मैं हूँ तुम्हारी साँसों में जीवन सा 

जैसे होती है मृग कुण्डिली में कस्तूरी 
मैं हूँ तुममें अहसास सा   
--------------------------------------------
ना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे मैं तो तेरे पास में


No comments:

Post a Comment

ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...