Monday 1 May 2017

आइज़ोल एफसी








                                            ये केवल रंगों का फ़र्क़ था।जो अविस्मरणीय इबारत पिछले साल (सत्र 2015-2016) 'मैन इन ब्लू' लिख रहे थे उसी इबारत को हज़ारों किलोमीटर की दूरी पर इस साल (2016-2017) 'मैन इन रेड' लिख रहे थे।इंग्लिश प्रीमियर  लीग में लीसेस्टर की टीम अगर 2014-15 में अपने आखरी नौ मैचों में से सात ना जीतती तो 2015 -16 में रेलीगेट हो जाती। और उसके बाद उसने अपने क्लब के 132 सालों के इतिहास में पहली बार इंग्लिश प्रीमियर लीग जीत कर इतिहास रचा था। बिलकुल वही आज आइजोल एफसी ने कर दिखाया।पिछले साल रेलीगेट हो जाने के बाद भाग्य से खेलने के मौके पर चौका लगाया और आई लीग जीतने वाला पहला पूर्वोत्तर क्लब बन गया। आज शाम जब आइज़ोल एफसी की टीम ने शिलोंग में  स्थानीय शिलोंग लाजोंग से 1-1 से ड्रा खेला तो आइज़ोल के लाल रंग की जर्सी में खिलाड़ी अपने खुद के और अपने समर्थकों के चेहरों पर ही रक्तिम आभा नहीं बिखेर रहे थे बल्कि मोहन बागान एफसी और उनके समर्थकों के सपने को तोड़ कर उनकी उम्मीदों को लहूलुहान भी कर रहे थे। निश्चय ही जब पूर्वोत्तर में आज सुबह सूरज उग रहा होगा तो उसमे आइज़ोल के लाल रंग की जर्सी की रक्तिम आभा का भी कुछ रंग मिला होगा। 
                             आज आई लीग के अंतिम लेकिन दो महत्वपूर्ण मैच खेले जाने थे जिनके परिणाम के आधार पर इस साल के लीग विजेता का निर्धारण होना था। मोहन बागान की टीम चेन्नई एफसी से खेल रही थी और आइज़ोल एफसी शिलॉन्ग लाजोंग की टीम से। आइज़ोल की टीम को लीग विजेता बनने के लिए केवल बराबरी की दरकार थी जबकि मोहन बागान को चैम्पियन बनने के लिए ना केवल अपना मैच जीतना था बल्कि आइज़ोल का हारना भी ज़रूरी था। मोहन बागान ने चेन्नई को 2-1 हरा दिया पर आइज़ोल ने अपना मैच शिलोंग लाजोंग से ड्रा खेला और चैम्पियन बना। 
                                   आइज़ोल के लिए आज का मैच आसान नहीं था। इस मैच के रैफरी बंगाल से ताल्लुक रखते थे जिसका आइज़ोल ने विरोध किया।दूसरी ओर उनके दो मुख्य खिलाड़ी कप्तान अल्फ्रेड जरयान और आशुतोष मेहता नहीं खेल रहे थे। दूसरे उनका मुकाबला स्थानीय और जोशीली युवा टीम लाजोंग से था जिसमें सभी खिलाड़ी अंडर 22 टीम के थे जिन्होंने पूरे सीजन में शानदार खेल दिखाया और अपने टीम के लिए पांचवां स्थान हासिल किया। युवा लाजोंग टीम ने शुरू से ही आक्रामक खेल दिखाया और शुरू में ही दो कार्नर अर्जित किये जिसका परिणाम हुआ कि नवें मिनट में ही लाजोंग ने ए.पैरिक दीपांदा ने हैडर से गोल कर आइज़ोल समर्थकों को सकते में डाल दिया। दीपांदा का ये इस सीजन का 11वां गोल था। इस के बाद आइज़ोल की टीम ने अपने को संगठित किया और जवाबी हमले बोले। अंततः आइज़ोल को सफलता मिली 67 मिनट में जब लालनुनफेला ने बराबरी का गोल किया। 
                                    आइज़ोल की टीम का आई लीग में ये दूसरा साल था और दूसरे साल ही आई लीग जीतने वाली नार्थ ईस्ट की पहली टीम बनी। पिछले साल अपने पहले सत्र में आठवें स्थान पर थी और रेलीगेट हो गयी थी लेकिन अंतिम समय में गोआ की टीम के हट जाने के कारण उन्हें खेलने का मौक़ा मिला और मौके को चूके नहीं और खिताब जीत इतिहास बना दिया। दरअसल ये जीत उनके नए कोच खालिद जमील की जीत है। जब सात साल बाद मुम्बई एफसी ने खालिद को हटा दिया तो वे आइज़ोल से जुड़ गए। उन्होंने टीम का पुनर्गठन किया और लीग की सबसे कमज़ोर मानी जाने वाली टीम को खिताबी जीत दिला दी। 
                                याद कीजिये सत्तर और अस्सी का दशक जब फुटबाल पर बंगाल की बादशाहत थी और मोहन बागान,ईस्ट बंगाल और मोहम्डन स्पोर्टिंग इन तीन बंगाली क्लबों का बोलबाला था। थोड़ी बहुत चुनौती जेसीटी मिल फगवाड़ा और डेम्पो स्पोर्टिंग क्लब से मिलती थी। ठीक वैसे ही जैसे क्रिकेट में मुम्बई दिल्ली और कर्नाटक का बोलबाला था। अगर क्रिकेट में परिदृश्य 1983 में विश्व कप जीतने के बाद बदला तो फ़ुटबाल में 90 के बाद लीग सिस्टम शुरू होने के बाद। अब बंगाल का वर्चस्व टूटने लगा। पंजाब और गोआ के अलावा केरल,महाराष्ट्र,सर्विसेज की टीमों के साथ साथ पूर्वोत्तर राज्यों से भी चुनौती मिलने लगी। फिलहाल देश के सुदूर क्षेत्रों में भी फ़ुटबाल की लोकप्रियता अच्छा लक्षण है और भारतीय फ़ुटबाल के अच्छे भविष्य की और संकेत भी। 
                                     आइज़ोल एफसी को बहुत बहुत बधाई।  









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