Thursday 29 June 2017

उम्मीद का चाँद





उम्मीद का चाँद
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जब जब मैंने चाहा  
कोई एक हो 
सावन बन बरस
भिगा दे तन मन
वो रूठा मानसून बन गया 
जब जब चाहा
कोई एक हो
बन धूप 
ठिठुरन से राहत दे 
वो शीत लहर बन गया
जब जब मैंने चाहा  
कोई एक हो 
छाया बन 
ताप से राहत दे 
वो लू सा चलने लगा 

पर हर नाउम्मीदी के चरम पर 

एक वो आता है 
कि बिन मौसम बरसात सा बरस 
मिटा देता अभाव के हर सूखेपन को 
कि सूरज बन टँक जाता मन के आकाश पर  
उष्मा सा फ़ैल
हर लेता निराशा की ठिठुरन 
कि समीर सा बहने लगता 
और सुखा जाता दुःख के हर स्वेद कण को 

वो जानता है 

कि नाउम्मीदी में उम्मीद का चाँद बन जाने से बेहतर
कहीं कुछ नहीं होता। 
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आ बैठे चल चर्च के पीछे 





Monday 26 June 2017

ये मोह मोह के धागे



                                 ये मोह मोह के धागे
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                     जब प्रसिद्द डच खेल पत्रिका 'फ़ुटबाल इंटरनेशनल' रोनाल्डो की तो बात ही छोड़िए माराडोना और पेले से आगे लियोनेस मेस्सी को सार्वकालिक महानतम फुटबॉलर बता रही थी तो मैं इस बात को प्रकारांतर से इस तरह समझ रहा था कि मेस्सी आगे आने वाले समय में एक मिथक के रूप में याद किये जाएंगे और उनसे जुडी हर बात किंवदंतियों के रूप में आने वाली पीढ़ी देखेगी और समझेगी। तो क्या भविष्य में उनकी प्रेम कहानी भी पौराणिक या लोक आख्यानों की किसी अमर प्रेम कथा की तरह लोगों के दिलो दिमाग पर कब्जा जमाए होगी।मेस्सी की प्रेम कहानी ? हाँ लियो और अंतोनेला रोक्कुज़ो की प्रेम कहानी।
                 असाधारण प्रतिभा वाले अद्भुत खिलाड़ी के किसी प्रसिद्ध मॉडल या सेलिब्रिटी से प्रेम की कहानी नहीं।आस पड़ोस की गली मोहल्ले के किसी लडके-लड़की की कहानी जो साथ साथ रहते,हँसते,बोलते,खेलते,जीते जन्मती है,पनपती है और एक खूबसूरत आकार में ढल जाती है।हर उस इंसान की अपनी कहानी है जिसमें एक दिल धड़कता है।एक साधारण सी प्रेम कहानी जो असाधारण रूप से साधारण है और इसीलिए असाधारण बन जाती है।एक ऐसी प्रेम कहानी जो एक दूसरी प्रेम कहानी के सामानांतर चलती जाती है एक दूसरे की आँखों में आँख डाले भी और हाथों में हाथ लिए भी। लियो प्रेम के द्वैत को जीता जाता है। बचपन के दो प्रेम एक साथ।फुटबाल से प्रेम और बचपन की साथी से प्रेम।
                          ये कहानी दक्षिणी अमेरिकी देश अर्जेंटीना के मध्य प्रांत सांता फे के मध्यमवर्गीय चेतना वाले सबसे बड़े शहर रोसारियो में जन्मती है। इस कहानी का एक किरदार साधारण से मज़दूर और सफाईकर्मी दंपत्ति के तीन बेटों और एक बेटी में से एक लियोनेल आंद्रेस मेस्सी है तो दूसरा किरदार एक सुपरमार्केट की मालकिन की बेटी अंतोनेला रोक्कुज़ो।लियो प्रतिभा संपन्न था। पांच वर्ष की उम्र में स्थानीय ग्रैंडोली क्लब में शामिल होता है और जल्द ही नेवेल्स ओल्ड बॉयज में। इसी दौरान एक और फुटबॉलर लुकास स्कैग्लिआ से दोस्ती होती है और स्कैग्लिआ के माध्यम से उसकी कजिन अंतोनेला रोक्कुज़ो से। पराना नदी के खूबसूरत पश्चिमी किनारे  पर खेलते कूदते जब दोनों बचपन से किशोरावस्था की और बढ़ रहे थे तो वे एक दूसरे के दिल की और भी कदम बढ़ा रहे थे। पर बाल सुलभ संकोच भी रहा होगा और फिर लियो तो बहुत ही शर्मीले स्वभाव का था। दिल की बात ज़ुबाँ पे आती तो कैसे। फिर हर प्रेम कहानी की तरह एक और मोड़ आना था। विछोह का। लियो को बीमारी होती है-ग्रोथ हार्मोन्स डेफिशिएंसी की। खर्चा बड़ा था जिसे ना परिवार उठा सकता था और ना क्लब। ऐसे में बार्सीलोना के खेल निदेशक कार्ल रिक्सेस ने लियो की प्रतिभा को पहचाना,उसके साथ अनुबंध किया और उसके इलाज का प्रबंध भी। परिवार यूरोप आ गया।ये सन 2000  था। दो दोस्त बिछड़ रहे थे। लियो के मन में अंतोनेला के लिए गहरी आसक्ति थी। वो इसे भले ही जुबां से ना कह पा रहा हो पर उसने एक पत्र लिखा था और उसमें  लिखा 'तुम देखना एक दिन तुम मेरी गर्लफ्रेंड बनोगी'।ये नियति थी। भविष्य में ऐसा होना था और हुआ। दुनिया नई सदी में प्रवेश कर रही थी। तमाम चीजों के साथ दुनिया को अब तक का सबसे बड़ा फुटबॉलर भी मिलना था।
                            लियो और अंतोनेला के रास्ते अलग हो चुके थे। लेकिन जो आकर्षण लियो के मन में अंतोनेला के लिए था उसे उससे कैसे अलग किया जा सकता था। लियो बार बार अपने शहर लौटता रहा। नियति में मिलना था तो था। चार साल बाद 2004 में जब लियो रोसारियो आया तो अंतोनेला अपने मित्र की मृत्यु से अवसाद में थी। लियो ऐसे में उस मित्र से मिलने गया जिसे वो बचपन से चाहता था और अपनी गर्लफ्रेंड बनाने का सपना देखा था। बचपन का वो प्रेम जो मन के किसी कोने में समय की बेरुखी से अलसाया पड़ा था कि दुःख की इस भीगी भीगी धरती पर उछाह लेने लगा। अलसाया प्रेम चैतन्य हो आया था। अब ये किसी के रोके रुकने वाला ना था। अब अंतोनेला भी बार्सीलोना आ जाती है। पराना नदी के किनारे जिस प्रेम नीर का बहाव शुरू हुआ था वो मेडिटेरियन सी के किनारे अपने अंजाम को आतुर था। तरलता ठोस रूप लेने लगी थी।सन 2012 का जून का महीना था। 2 तारीख थी। अर्जेंटीना इक्वेडोर के विरुद्ध खेल रहा था। जैसे ही लियो ने दूसरा गोल किया। उसने गेंद को अपनी शर्ट के अंदर डाला और दुनिया के सामने घोषणा की कि वे जल्द पिता बनने जा रहे हैं। ठीक पांच महीने बाद बेटे का जन्म हुआ।11 सितम्बर 2015  को दूसरे बेटे का जन्म हुआ। बचपन का वो आकर्षण जो छोटे से सोते के रूप में मन में बह निकला था अब समुद्र सा विशाल हो चला था। एक कमज़ोर सा आकर्षण ठोस आकार ग्रहण कर चुका था और परिपक्व भी हो चला। उसे एक नाम मिलना चाहिए था। ना भी मिलता तो कोई बात नहीं थी। दोनों ने शादी के बंधन में बंधने का निश्चय किया। 30 जून को वे शादी के बंधन में बंध जाएंगे। लियो रोक्कुज़ो को शादी बहुत बहुत मुबारक हो।और हाँ हम आगे आने वाले समय में बताएँगे कि ऐसा कुछ हमारे समय में घटित हुआ था। 
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ये इश्क़ नहीं आसाँ ये तो समझ लीजिये 
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है!











Sunday 18 June 2017

हार जीत

                           
                                             

          

                                       जीत हार 
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                               जब भी आपकी टीम हारती है आप ना केवल निराश होते हैं बल्कि दुखी भी होते हैं। फिर वो आपके क्लब की टीम हो,प्रदेश की टीम हो या देश की टीम हो। साइना या सिंधु हारती हैं तो निराशा होती है,सानिया या पेस हारते हैं तो निराशा होती है,नडाल या सेरेना हारती है तो निराशा होती है,बर्सिलोना या गोल्डन स्टेट हारती है तो निराशा होती है,ब्राज़ील या अर्जेंटीना हारती है तो निराशा होती है। आज जब भारतीय टीम हारी और जिस तरह से हारी उससे घोर निराशा होनी बनती है। लेकिन खेल है और खेल में एक पक्ष कभी भी अजेय नहीं हो सकता। भारत की टीम भी नहीं। आप जीत का जश्न मनाते हैं तो हार का मातम भी मनाइए कोई बुराई नहीं। 
                                  लीग मैच में पकिस्तान की टीम जिस तरह से हारी थी तो यही लिखा था कि ये किसी शेर द्वारा मेमने का शिकार करने जैसा था। ठीक चौदह दिन बाद एक बार वही दृश्य था बस किरदार बदल गए थे। पाकिस्तान की जीत निसंदेह काबिले तारीफ़ है।पिछले कुछ सालों में जाने कितने खिलाड़ी और कप्तान आये और गए। इस बार पाकिस्तान की टीम को सबसे कमज़ोर समझा जा रहा था। उसमे केवल दो ही पुराने और अनुभवी खिलाड़ी थे शोएब मालिक और हफ़ीज़। बाकि सब नए या कम अनुभवी। ये उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी थी थी जो चैंपियंस ट्रॉफी के ख़त्म होते होते सबसे बड़ी ताक़त बन गयी। .नए खिलाडियों ने एकजुटता दिखाई। मतभेदों के लिए पुराने खिलाड़ी थे नहीं।भारत से हार के बाद टीम ने अपने को संगठित किया,शानदार खेल दिखाया और विजेता बने। 
                                      खेल भावना कहती है अपने विपक्षी की सफलता को खुले दिल से सराहे। तो पाकिस्तान को ये शानदार जीत बहुत बहुत मुबारक हो।और हाँ हिन्दुस्तान को भी 7-1 से शानदार जीत पर बहुत बहुत बधाई। 






इंडोनिशया सुपर सीरीज


इंडोनिशया सुपर सीरीज
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                         खेल भले ही युद्ध ना होता हो पर मुक़ाबला तो होता ही है जिसमें एक पक्ष और दूसरा प्रतिपक्ष होता है और आप एक प्रतिभागी,दर्शक या समर्थक के रूप में स्वाभाविक पक्षकार होते हैं। अगर आप तटस्थ हैं तो निश्चित ही या तो आपमें खेल भावना का अभाव है या किसी अतिवाद से प्रभावित हैं। किसी भी टीम का समर्थन उतना ही सहज नैसर्गिक और न्यायसंगत है जितना कोई भी और कार्य हो सकता है।आज के दोनों मुक़ाबलों में जिनमें भारत पकिस्तान के मुक़ाबिल है भारत की जीत को लेकर अति उत्साहित हूँ और जीत की कामना करता हूँ। फिलहाल इस समय जो एक मुकाबला चल रहा है और दूसरा शाम सवा छह बजे शुरू होगा इनके नतीजे आने में अभी देर है। इस बीच एक तीसरे मुक़ाबले में भारत के लिए अच्छी खबर है और ये बैडमिंटन से है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में आज फाइनल में श्रीकांत किदाम्बी ने जापान के काज़ुमासा सकाई को आसानी से 21-11 और 21-19 से हरा कर इंडोनेशिया सुपर सीरीज ओपन जीत लिया।
                         ये श्रीकांत का दूसरा सुपर सीरीज प्रीमियर ख़िताब है।वे इंडोनिशया सुपर सीरीज के पुरुष एकल फाइनल में पहुँचाने वाले और खिताब जीतने वाले पहले भारतीय शटलर हैं।पहले  महिलाओं में सिंधु और साइना की चुनौती दूसरे ही दौर में समाप्त हो गई। लेकिन पुरुष वर्ग में भारतीय खिलाडियों ने शानदार खेल दिखाया। एच एस प्रणय ने सेमि फाइनल तक का सफर तय किया और इस  उन्होंने 2016 ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता चेन लॉन्ग और रजत पदक विजेता ली चोंग वेई को हराया लेकिन सेमि फाइनल में जापान के के सकाई से पार ना पा सके /दूसरी और श्रीकांत शानदार फॉर्म में थे। उन्होंने सेमीफइनल में विश्व नम्बर एक दक्षिण कोरिया के सोन वान हो को संघर्षपूर्ण मुक़ाबले में 21-15,14-21 और 24-22 से हराकर फाइनल में प्रवेश किया। आज विश्व नम्बर 47 पर किदाम्बी की जीत लगभग तय थी और उन्हें जीतने में कोई परेशानी नहीं हुई। किदाम्बी पी गोपीचंद के बाद भारत की बड़ी उम्मीद हैं। वे इन दिनों शानदार खेल रहे हैं। वे बहुत आक्रामक खिलाड़ी हैं और अपने ज़ोरदार स्मैशेस के लिए जाने जाते हैं। साथ ही उनके रेफ्लेक्सेस बहुत ही तेज़ हैं। आज फाइनल मैच का खेल उन ऊंचाइयों तक नहीं पहुंच पाया। अक्सर ऐसा होता कि सामने कमज़ोर खिलाड़ी के होने से एक स्वाभाविक ढिलाई आ जाती है। किदाम्बी के साथ ऐसा ही हुआ। उन्होंने धीमी शुरुआत की। स्मैशेस की जगह प्लेसिंग और नेट पर अच्छा खेल दिखाया और पहला सेट 21-11 से जीत लिया। अगर वे बेजा गलतियां(ना करते तो सकाई दहाई अंकों में भी नहीं पहुँच जाते। दूसरे गेम में श्रीकांत थोड़ा कैज़ुअल हुए और सकाई ने 11-6 की बढ़त ले ली। उसके बाद किदाम्बी संभले और स्कोर पहले 17-17 और उसके बाद 19-19 बराबर किया और फिर 21-19 से गेम जीत ख़िताब जीत लिया।
 
                       आज तीन मुकाबले में पहली जीत की बधाई। 





वारियर्स


वारियर्स
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पिछले तीन सालों से एनबीए के जून में दो ही मुकाम होते हैं ओरेकल एरीना और क्विकें लॉन्स एरीना के सेंटर कोर्ट।बात 2015 की है जब 18 जून की रात को क्लीवलैंड ऑहियो के 'द क्यू' के नाम से प्रसिद्ध क्विकें लॉन्स एरीना के सेंटर कोर्ट में  गोल्डन स्टेट वारियर्स और क्लीवलैंड कैवेलियर्स के बीच एनबीए के फाइनल्स का छठा गेम समाप्त हुआ तो गोल्डन स्टेट टीम के लिए 40 सालों से संजोया सपना उनका अपना बन चुका था।2016 में एक बार फिर ये दोनों टीमें ही फाइनल्स में आमने सामने थीं। वारियर्स 3-1 आगे थी और लैरी ओ ब्रायन ट्रॉफी बैक टू बैक दूसरी बार वारियर्स के होमटाउन ओकलैंड की शोभा बढ़ाने जा ही रही थी कि लेब्रोन जेम्स की अगुआई में कैवेलियर्स की टीम ने अविश्वसनीय ढंग से वापसी की और वारियर्स को 4-3 से हरा कर लैरी ओ ब्रायन ट्रॉफी छीन ली।आहत वारियर्स ने 2014 के एमवीपी केविन डूरंट को ट्रेड किया।ये एक ऐसा परिवर्तन था जिसने वारियर्स को लगभग अपराजेय बना दिया। उन्होंने रेगुलर सेशन में 67-15 के रेकॉर्ड के साथ पोस्ट सेशन में प्रवेश किया और प्रतिद्वंदियों को लगभग रौंदते 12-0 से वेस्टर्न कांफेरेंस का फाइनल जीता।अब  एक बार फिर और  लगातार तीसरे साल कैवेलियर्स की टीम फाइनल्स में वारियर्स के  सामने थी जिसने आसानी से ईस्टर्न कॉन्फरेंस फाइनल जीता था। पिछले दो मुकाबलों में  लेब्रोन और करी के बीच के द्वन्द का आकर्षण  इस बार लेब्रोन और केविन डूरंट के द्वन्द में तब्दील हो गया था। जिस समय केविन डूरंट ने जुलाई 2016 में वारियर्स टीम ज्वाइन की थी तो उस समय निश्चित ही 2012 का फाइनल्स दिमाग में रहा होगा जब वे ओकलाहामा सिटी थंडर्स के लिए खेल रहे थे और लब्रोन मियामी हीट के लिए और लेब्रोन ने उन्हें अपनी पहली रिंग से वंचित कर दिया था। लेकिन इस बार केविन डूरंट वारियर्स से खेल रहे थे जिसे हरा पाना लगभग असंभव था और अंततः अपनी पहली रिंग पाने में सफल रहे। वारियर्स की तीन सालों में ये दूसरी टाइटल जीत थी। वारियर्स की टीम को बधाई तो बनती है। 





Friday 16 June 2017

जीवन















जीवन 
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हर सुबह नए जोश से 

उमगता सा सूरज मिलने आता 
अपनी प्रियतमा धरती से 
दिन भर अठखेलियां करता 
ओढ़ा सुनहरी धूप की चुनरी 
उष्मा से उसे भरता जाता 
शाम ढले जब वो वापस जाता 
तो चंदा चुपके से 
मंद मंद मुस्काते आता 
हास परिहास कर उससे 
रुपहली चादर शीतल चांदनी से 
दग्ध प्रेमिका को सहला जाता
दूर गगन में हॅसते गाते तारे भी आते 
अपनी खिलखिलाहटों से 
वे भी धरती को कुछ उमगा जाते 
जब तब आवारा बादल भी तो आता 
कर चन्दा सूरज को पीछे 
भर प्यासी धरती को आगोश में 
उसकी प्यास मिटा जाता 
और 
बावली धरती 
इन सब से कुछ कुछ लेकर 
अपनी औरस संतान की खातिर 
खुद को हरा भरा करती जाती 
पर बेगैरत संतान वो उसकी 
कहाँ उसकी ममता का मान है धरती 
पहुंचा अपनी ही माँ को रुग्णावस्था में 
मृत्यु उसकी निश्चित करती 
नहीं जानते पर वे
जिस दिन मृत्यु माँ की होगी
कैसे उठेगी उनकी खुद की अर्थी ।    
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तो क्या मृत्यु ऐसे भी आती है ?













Sunday 11 June 2017

ला डेसिमा/ए परफेक्ट टेन



ला डेसिमा/ए परफेक्ट टेन 
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आज रविवार की शाम फ्रांस के खूबसूरत शहर पेरिस के रोलां गैरों के फिलिप कार्टियर सेंटर कोर्ट की लाल मिट्टी पर जब राफेल नडाल अपने प्रतिद्वंदी स्टेनिलास वारविंका को मिट्टी की सतह पर टेनिस खेलने का सबक सिखाते हुए 6-2,6-3,6-1 से जीत दर्ज़ कर रहे थे तो वे केवल अपना दसवां फ्रेंच ओपन खिताब ही नहीं जीत रहे थे बल्कि 16 वीं शताब्दी के महान स्पेनिश  लेखक और संगीतकार विंसेंट एस्पिनल की तरह ही एक खूबसूरत 'डेसिमा' कविता लिख रहे थे जिसे एस्पिनल की कविताओं और संगीत की तरह ही उनके देश वासी लम्बे समय तक गुनगुनाते रहेंगे।डेसिमा के दस पंक्तियों वाले स्टेंज़ा को उन्होंने 2005 में लिखना शुरू किया और 2017 में पूरा किया। ओपन एरा में कोई भी ग्रैंड स्लैम 10 बार जीतने वाले वे पहले खिलाड़ी हैं। इस साल के शुरू में जब ऑस्ट्रेलियन ओपन का नडाल और फेडरर के बीच जो फाइनल मैच खेला गया वो केवल फाइनल मैच भर नहीं था बल्कि आधुनिक टेनिस इतिहास के पहले और दूसरे पायदान को निर्धारित करने वाला मैच भी था और उस क्लासिक मैच में फेडरर ने बाज़ी मारी थी। लेकिन आज नडाल ने बताया कि वे भी नम्बर दो नहीं हैं।हाँ सतह का फ़र्क़ हो सकता है। मिट्टी की सतह पर वे सार्वकालिक महानतम हैं इसमें किसी तरह का कोई शक नहीं किया जा सकता है। ये परफेक्ट 10 था-'ला डेसिमा'।इतना भर नहीं पहले मोंटो कार्लो और बार्सेलोना के क्ले कोर्ट पर और अब यहाँ पर दसवां खिताब जीत कर 'ट्रिपल टेन' पूरा किया। 
                       यहां पर याद कीजिये रियाल मेड्रिड फ़ुटबाल क्लब के दसवें यूरोपियन कप को जीतने के उसके ऑब्सेशन को कि 'ला डेसिमा' फ्रेज़ उसके इस ऑब्सेशन का समनार्थी बन गया था। उसने यूरोपियन कप जिसे अब चैम्पियंस लीग के नाम से जाना जाता है,नौवीं बार 2002 में जीता था। उसके बाद उसे 12 सालों तक प्रतीक्षा करनी पडी थी। तब जाकर 2014 में रियाल मेड्रिड की टीम अपना दसवां खिताब जीत सकी थी। लेकिन नडाल को केवल दो वर्ष लगे। 
                   नडाल ने अपना नौवा खिताब 2014 में जीता था। उसके बाद के दो वर्ष चोटों और ख़राब फॉर्म के रहे। एक बारगी लगाने लगा था कि उनकी वापसी की संभावनाएं ख़त्म हो गई हैं।लेकिन उन्होंने चैम्पियन की तरह वापसी की।इस साल वे चोट से उबरे और साल के पहले ही ग्रैंड स्लैम ऑस्ट्रेलियन ओपन के फाइनल में पहुँच कर अपनी फॉर्म की वापसी की घोषणा कर दी थी।और फिर मिट्टी की सतह पर तो वे लगभग अपराजेय से थे। वे इस पूरे सीजन में केवल एक मैच हारे रोम मास्टर्स के फाइनल में डोमिनिक थिएम से। 
                   फ्रेंच ओपन में उनकी जीत क्ले कोर्ट पर उनकी श्रेष्ठता को प्रदर्शित करती है। उन्होंने इस पूरी प्रतियोगिता में एक भी सेट नहीं हारा। इस प्रतियोगिता में उन्होंने ऐसा तीसरी बार किया।सेमीफइनल में थिएम को सीधे सेटों में हराया जिसने नोवाक को हरा कर सेमीफाइनल में प्रवेश किया था और इस प्रतियोगिता से ऐन पहले रोम मास्टर्स के फाइनल में नडाल को हराया था। वारविंका से फाइनल में कड़े संघर्ष की उम्मीद की जा रही थी। इस पूरी प्रतियोगिता में वारविंका भी ज़बरदस्त फॉर्म में थे। उनके पक्ष में कई बातें थी। उनमें गज़ब का स्टेमिना है जो इस समय किसी टेनिस खिलाड़ी के पास नहीं है। 30 डिग्री तापमान में खेलने के लिए वे शारीरिक रूप से सबसे अधिक सक्षम थे। उन्होंने अब तक के तीनों ग्रैंड स्लैम फाइनल जीते थे। और इस बार उन्हें नडाल की चौथी वरीयता के मुक़ाबले तीसरी वरीयता दी गई थी।उनका सबसे शक्तिशाली अस्त्र उनके ज़बरदस्त फोरहैंड शॉट्स थे जिसे वे इस बार बहुत शानदार तरीके से लगा रहे थे। दूसरी और नडाल की भी सबसे बड़ी ताक़त उनके फोरहैंड शॉट्स ही थे।वे दोनों एक दूसरे को फोरहैंड शॉट्स खेलने से नहीं रोक सकते थे। ऐसे में ज़रूरी था कि वे अपने प्रतिद्वंदी को फोरहैंड शॉट्स को पोजीशन ना करने दें। आज नडाल ऐसा करने में सफल रहे। उन्होंने शानदार सर्विस की और इतने ज़बरदस्त क्रॉसकोर्ट और डाउन द लाइन फोरहैंड शॉट्स लगाए कि वारविंका अपने शॉट्स तो दूर की बात थी खुद को भी पोजीशन नहीं कर पाए।
                   दरअसल ये एकतरफ़ा फाइनल था जिसमें एक महान स्पेनिश खिलाड़ी बाल और रैकेट से लाल मिट्टी पर शानदार डेसिमा की रचना कर वहां बैठे हज़ारों दर्शकों को सुना रहा था।खुद उनका प्रतिद्वंदी मंत्र मुग्ध सा उन्हें सुन और देख रहा था और वो था कि टेनिस जगत में एक असाधारण इतिहास लिख रहा था।  








Friday 9 June 2017

जब ये दिल उदास हो







जब भी ये दिल उदास होता है 

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सुनो 
मत होना उदास 
कि नहीं हूँ मैं 
तुम्हारे आस पास 


बस ज़रा खुद से बाहर आना 

देखना पत्तों पर ठहरी ओस की बूंदें 
और महसूसना मेरे मन का गीलेपन   
सुनना पक्षियों का कलरव  
और महसूसना मेरे दिल की धड़कन 
थोड़ी देर ठहरना ऐसे ही 
लिपटना हवा के झोंकों से  
और महसूसना मेरी साँसों की कम्पन 
थोड़ी सी मिट्टी हाथ में लेना 
घोलना अपनी आँख का पानी  
और महसूसना मेरी देह गंध 
थोड़ी देर बाहर ही रहना 
खुद को हवाले करना 
रिमझिम बरसते
धरती के लिए बादल राग के 
कि खुद ही महकने लगोगी मेरे प्रेम की कस्तूरी से 

और जान जाओगी 

मैं वहीं कहीं हूँ 
वहीं कहीं 
तुम्हारे पास ! 
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जब भी ये दिल उदास होता है 
जाने कौन आस पास होता है !













Monday 5 June 2017

मेमने का शिकार




                              तमाम कारणों से यूँ तो क्रिकेट में रूचि कम हो रही है। लेकिन जब भी भारत पाक मैच होता है तो दिलचस्पी बढ़  ही जाती है।कारण यही है कि भारत पाक के खिलाड़ी मैदान में जब भी आमने सामने होते हैं,फिर वो चाहे कोई भी खेल हो,दिल से खेलते हैं,जोश जूनून और जज़्बे के साथ खेलते हैं जो खेल की बुनियादी शर्त है। खेल में शारीरिक खेल कौशल ही नहीं बल्कि मानसिक क्षमता का भी संघर्ष होता है और उनके धैर्य और दबाव झेलने की क्षमता का भी। इस सब से खेल उठान पाता है और आपको खेल देखने में आनन्द आता है। भारत और पाक के पिछले मुक़ाबले इस बात के गवाह हैं। फिर ये भारत और पाक के बीच ही नहीं बल्कि किन्ही भी दो पारम्परिक प्रतिद्वंदियों के बीच मुक़ाबलों का सच है। लेकिन कल रात एजबेस्टन में खेला गया मैच निराश करने वाला था। ये शेर द्वारा मेमने का शिकार करने जैसा कुछ था।ये इन दोनों टीमों के बीच खेला गया शायद अब तक का सबसे नीरस मैच था।ये सही है कि भारत की टीम की टीम इस समय दुनिया की सबसे मज़बूत टीमों में से है और पाक की सबसे कमज़ोर टीम। लेकिन जिस तरह से पाक टीम ने हार मानी ये आश्चर्य की बात थी। वे शुरू से ही हारा हुआ मैच खेल रहे थे। उनकी शारीरिक भाषा केवल और केवल नकारात्मक संकेत प्रेषित कर रही थी। दरअसल पाकिस्तानी क्रिकेट की ये दशा पाकिस्तान की अंदुरुनी दशा पर टिप्पणी है। देश बदहाली के दौर से गुज़र रहा है। आतंकवाद और धर्मान्धता से जूझ रहा है।आधुनिकता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं,आधुनिक सोच,शिक्षा ,आर्थिक प्रगति किसी से भी। वहां का घरेलु क्रिकेट ख़त्म है और बोर्ड बदहाल स्थिति में है।और ये हाल केवल क्रिकेट का ही नहीं बल्कि हॉकी और स्क्वाश  जैसे खेलों का भी है।यही हाल रहा तो नैसर्गिक प्रतिभा वाले क्रिकेट खिलाड़ियों के देश में क्रिकेट को ख़त्म होने में देर नहीं लगेगी। ये खेल की हार होगी और क्रिकेट की भी !





ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...