Wednesday 26 July 2017

रिमझिम गिरे सावन.....



                                  रिमझिम गिरे सावन
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     इस बरसात सावन जम के बरस रहा है। अगर इसमें आपका तन भीग रहा हो और मन में कुछ रिसने लगा हो तो ऐसे में एक गाने को याद कीजिए,सुनिए और देखिए---'रिमझिम गिरे सावन....'  1979 में फ़िल्म आयी थी मंज़िल। फिल्म तो ज़्यादा नहीं चली पर उसका ये गाना ज़बरदरत हिट हुआ।यूँ तो बॉलीवुड में बरसात पर बहुत से गाने हैं जिनमें गज़ब की सेंसुएलिटी है। ऐसी सेंसुअलिटी जिसमें उत्तेजना है,मादकता है,गति है,तीव्रता है।लेकिन इस सब से अलग हटकर ये गाना अपनी स्वाभाविकता,सादगी,ठहराव और उद्दात्तता से रोमान का जो आख्यान रचता है वो और कहीं नहीं है।  सत्तर के दशक के बॉम्बे के लैंडमार्क्स वाली बैकग्राउंड और वास्तविक बारिश में अमिताभ और मौसमी अभी अभी प्यार में पड़े दो युवा दिलों के बारिश में भीगने का जो किरदार निभाते हैं वो बेजोड़ है। प्यार से लबरेज़ दो युवा दिलों का बारिश में भीगने का उल्लास,उमंग,उत्साह छलक छलक जाता है जो आपकी आँखों और कानों से होकर कब आपके दिल को धीरे धीरे सींझने लगता है,कब आपके भीतर भी प्रेम रिसने लगता है और अंतर्मन गीला हो जाता है पता ही नहीं चलता।मौसमी के चहरे की मासूमियत और भीगने की उमंग तो बस उफ्फ्फ्फ़ जिसे रेखा का चुलबुलापन और दीप्ति की सादगी मिलके भी ना रच सकें। दरअसल इस गाने में शब्द,लय,वाणी और दृश्य मिलकर बारिश और प्रेम का एक अद्भुत नैरेटिव रचते हैं। 


                                                                            

  'भीगा भीगा मौसम आया
   बरसे घटा घनघोर
   प्रीत का पहला सावन आया
   देखो मचाये कैसे शोर..... '

Monday 24 July 2017

महिला विश्व कप



महिला विश्व कप 

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             समय सबसे बड़ी शै है। वक़्त पर भला किसका ज़ोर चला है। इसे आज लॉर्ड्स के मैदान पर इतिहास बनाने उतरी भारतीय बालाओं से बेहतर भला  कौन समझ सकता है। जिस टीम को आप राउंड रोबिन में हरा चुके हों और फाइनल में भी लगभग 40 ओवरों तक मैच आप की पकड़ में हो कि अचानक अपनी अनुभवहीनता और हड़बड़ाहट में हार जाते हो तो आप केवल एक मैच ही नहीं हारते बल्कि एक स्वर्णिम इतिहास रचने का मौक़ा भी हाथ से गँवा देते हो। एक ऐसी हार जो आपको लम्बे समय तक सालती रहेगी।एक पल की गलती की खता सदियाँ भुगतती हैं कि कुछ ओवरों की गलतियां लम्बे समय तक टीसती रहेगी।
            इस सब के बावजूद हार निराशाजनक नहीं है। ये तस्वीर का एक पहलू है। आप सेल्फी लेती लड़कियों के चहरे ध्यान से पढ़िए। ये चहरे खुशी और आत्मविश्वास से लबरेज हैं। उन्हें खुद पर भरोसा है। भरोसा अपनी काबिलियत पर कि आने वाले समय में अपने भाग्य की इबारत वे खुद लिखेंगी कि दुनिया उस पर रश्क़ करेगी। हार के बावजूद ये भारतीय टीम ही है जिसने ऑस्ट्रेलिया,इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के वर्चस्व में सेंध लगाई है। ये भारतीय टीम ही है जो इन टीमों के अलावा दो बार फाइनल तक पहुंची। पिछले संस्करण में वेस्टइंडीज फाइनल में पहुँचाने वाली एक और टीम बनी थी।

                           भारत में महिला क्रिकेट की वो स्थिति नहीं है जो पुरुष क्रिकेट की है। हांलाकि पहला महिला टेस्ट मैच 1934 में खेला गया था ऑस्ट्रेलया और इंग्लैंड के बीच। पर भारत में 1973 में महिला क्रिकेट की नींव पडी जब वूमेंस क्रिकेट असोसिऐशन ऑफ़ इंडिया का गठन हुआ और 1976 में पहला टेस्ट मैच खेला वेस्ट इंडीज़ के विरुद्ध।तमाम दबावों के बाद 2006 में वूमेंस एसोसिएशन का बीसीसीआई में विलय हो गया। इस उम्मीद के साथ कि महिला क्रिकेट की दशा सुधरेगी। ऐसा हुआ नहीं। बीसीसीआई ने भी इस और कोई ध्यान नहीं दिया। ना उन्हें पैसा मिला,ना मैच मिले,ना बड़ी प्रतियोगिताएं मिली और ना आईपीएल जैसा कोई प्लेटफार्म। घरेलु क्रिकेट का भी कोई ढांचा विकसित हो पाया। इस सब के बावजूद अगर लडकियां विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराती हैं और एक ताकत बन कर उभर रहीं हैं तो ये उनकी खुद की मेहनत है,लगन है। ये उनके भीतर की बैचनी और छटपटाहट है अपने को सिद्ध करने की,साबित करने की।कोई गल नी जी। इस हार से ही जीत का रास्ता बनेगा कि 'गिरते हैं शह सवार मैदाने जंग में..।कम ऑन टीम इंडिया।






Sunday 23 July 2017

इस बरसात



इस बरसात.....



3. 
इस बरसात
तेरी याद
आँखों से बरसी बन
कतरा कतरा।


4.

इस बरसात
तेरी याद में 
इतनी बरसी आँखें
कि बेवफाई से लगे
जख्मोँ के समंदर भी
छोटे लगने लगे।  


5. 
ये सावन 
तेरी यादों का ही तो घर है 
यहां अक्सर वे बादलों की तरह घुमड़ती हैं 
और बिछोह की अकुलाहट की उष्मा से 
पिघल पिघल 
बूँद बूँद बरसती है।  

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Sunday 16 July 2017

तुस्सी रियली रियली ग्रेट हो यार



                              तुस्सी रियली रियली ग्रेट हो यार
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ये मानव जीवन की विडंबना ही है कि उसके मन में पुरातन के प्रति खासा रोमान होता है और स्थापित के प्रति अत्यधिक आग्रह,जबकि परिवर्तन उसके जीवन का शाश्वत सत्य होता है।यही विरोधाभास द्वन्द का आकार लेता है,पुराने और नए के बीच का द्वन्द-अपने को स्थापित करने का और अपने को साबित करने का।पुराने के पास अनुभव होता है,उसकी जड़े गहरी होती हैं। नए में वेग होता है,जोश होता है। नया पुराने को विस्थापित कर खुद को स्थापित करने की लगातार चेष्टा करता रहता है तो पुराना अपनी जगह स्थापित रहने के लिए नए का लगातार प्रतिरोध करता रहता है। संघर्ष लगातार चलता रहता है और एक समय आता है जब नया पुराने को विस्थापित कर खुद स्थापित कर देता है। फिर कुछ और नया आता है और इस तरह ये द्वन्द लगातार चलता रहता है। जीवन के हर क्षेत्र में और निसंदेह खेल में भी। आज आल इंग्लैंड क्लब के सेंटर कोर्ट में भी कुछ ऐसे ही जबरदस्त संघर्ष की उम्मीद थी। नए और पुराने के बीच। अनुभव और जोश के बीच। लेकिन ये एंटी क्लाइमेक्स था। 

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आज जब आल इंग्लैंड क्लब के सेंटर कोर्ट पर पुरुषों के फाइनल के लिए 35 वर्षीय रोजर फेडरर और  28 वर्षीय मारिन सिलिच जब मैदान में उतरे तो निसंदेह अधिकाँश खेल जानकार और खेल प्रेमी फेडरर की जीत के प्रति आग्रही ही नहीं बल्कि आश्वस्त भी थे। इसके अपने कारण भी थे जिनके चलते ऐसा होना स्वाभाविक था। पिछले साल विंबलडन में चोट के बाद वे कॉम्पटीटिव टेनिस से दूर रहे,फिटनेस पर ज़बरदस्त काम किया और तरोताज़ा होकर ऑस्ट्रेलियाई ओपन में शानदार जीत हासिल की। उसके बाद वे जानते थे कि क्ले कोर्ट उनका फोर्टे नही है, यहां शक्ति जाया करना बेकार है,इसलिए उन्होंने फ्रेंच ओपन छोड़ दिया। । उन्होंने इस समय का उपयोग विंबलडन की तैयारी में लगाया और फिटनेस पर ध्यान दिया। जिस तरह की टेनिस इन दिनों वे खेल रहे थे निसंदेह वे सबसे प्रबल दावेदार थे। हालांकि फैबुलस फोर के बाकी तीन भी उतने बड़े दावेदार थे। लेकिन बाकी तीन और फेड में जो अंतर था वो फिटनेस का था। जब मरे,जोकोविच और राफा खराब फिटनेस और चोट के चलते एक एक करके हारते चले गए तब एक फेड ही ऐसे थे जो अपनी फिटनेस और फॉर्म के चलते शानदार तरीके से जीत दर्ज़ करते जा रहे थे।लेकिन यकीं मानिये जब सब फेड पर दांव लगा रहे थे तो कुछ ऐसे भी लोग थे जो नए की तरफ बड़ी आस से टकटकी लगाए थे।कुछ लोग इस उम्मीद से भरे बैठे थे कि पिछले 15 सालों से विंबलडन के सेंटर कोर्ट पर फैबुलस 4 के चले आ रहे वर्चस्व को कभी तो चुनौती दी जा सकेगी। वे इस उम्मीद से भरे बैठे थे कि वो कभी शायद आज हो।और ये आस यूँ ही नहीं थी। इसके पीछे अपने तर्क थे। सिलिच ने इस पूरी प्रतियोगिता में शानदार खेल दिखाया था। भले ही फेड के खिलाफ उनका रेकॉर्ड 1-6 का हो,लेकिन आखरी दो मैच उनकी जीत की संभावना को जगाते थे। 2014 के यूएस ओपन के सेमीफाइनल में फेड को हराया था और पिछले साल यहीं विंबलडन में वे लगभग जीत ही गए थे। वे पहले दो सेट जीत चुके थे और चौथे सेट में तीन मैच पॉइंट उनके पास थे। तब भी हार गए। शायद उनका दिन नहीं था वो। कुल मिलाकर कड़े मुकाबले की तो उम्मीद की जा रही थी ही। 


एक ऐसे मैच में जिसमे कड़े संघर्ष की उम्मीद की जा रही थी,ऐसे संघर्ष की जो इस साल के ऑस्ट्रेलियाई ओपन के फाइनल वाली ऊंचाइयों को छुए,सब कुछ उम्मीद के उलट हुआ। सिलिच ने शुरुआत बेहतर की 2-2 की बराबरी की पर तीसरे ही गेम में सर्विस तुड़वा बैठे और उसके बाद दो बार और। सेट हारे 3-6 से। दूसरे सेट में 0-3 से पिछड़ गए। यहां पर उन्हें मेडिकल ऐड की ज़रुरत पडी। खेल बीच में ही ख़त्म हुआ चाहता था। सिलिच ने हिम्मत दिखाई, मैच पूरा करने की औपचारिकता की। फेड ने 6-3,6-1,6-4 से मैच जीता। आठवीं बार विम्बलडन और 19वां ग्रैंड स्लैम खिताब जीतकर इतिहास के पन्नों में अमर हो गए सार्वकालिक महानतम एथलीट के रूप में।
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ये एक ऐसी जीत थी जिसे शायद फेड भी पसंद नहीं करेंगे। लेकिन खेल में ऐसा होता है। फिटनेस आधुनिक खेलों का आवश्यक अंग है। अगर आपको जीतना है,अव्वल रहना है तो फिट रहना ही होगा। इस उपहार में मिली जीत से फेड की महानता पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। जैसे राफा क्ले कोर्ट के बेताज बादशाह हैं,ग्रास कोर्ट पर अब उन्हें कोई छू नहीं सकता। उन्होंने पीट सम्प्रास की स्मृतियों को धुंधला दिया। वे सम्प्रास जिन्होंने अपने शानदार सर्व और वॉली खेल से विंबलडन के हरी घास के मैदान पर सात बार जीत दर्ज़ कर सफलता के नए प्रतिमान गढ़े थे। फेड की ये उपलब्धियां इसलिए भी शानदार हैं कि ये उन्होंने उस उम्र में हासिल की हैं जब अधिकांश खिलाड़ी खेलने की सोचता भी नहीं है। वे कुछ दिन में 36 के हो जाएंगे। उन्होंने अपना आखरी ग्रैंड स्लैम 2012 में जीता था विंबलडन। उसके बाद का समय उनकी असफलताओं का समय था। मरे,राफा और जोकोविच के सामने लगता रहा कि उनका समय समाप्त हो गया है। अब अक्सर उनसे संन्यास के बारे में सवाल किये जाने लगे। पर उन्होंने संयम और धैर्य बनाये रखा,हिम्मत नहीं हारी,खेलते रहे। इस साल शानदार वापसी की। पहले ऑस्ट्रेलियन और अब विंबलडन जीत कर खेल इतिहास की नयी इबारत लिख दी।
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ओये फेड!तुस्सी रियली रियली ग्रेट हो यार! तेनू लख लख सलाम! 















विंबलडन की नई रानी



विंबलडन की नई रानी 
            


                'इतिहास अपने को दोहराता है' बहुत सारे लोग इस उक्ति को आंशिक सत्य ही मानते हैं क्योंकि ऊपर से समान दिखाई पड़ने के बावजूद दो घटनाएं अपनी मूल प्रकृति में काफी अलग होती हैं। लेकिन आज विंबलडन के सेंटर कोर्ट पर जो कुछ घट रहा था वो इस उक्ति को अक्षरशः सत्य सिद्ध कर रहा था।उस पर संयोग ये कि 23 साल पहले जो कुछ उस्ताद ने किया था उसे आज शागिर्द दोहरा रहा था। याद कीजिये 1994 का विम्बलडन। 37 वर्षीया चेक गणराज्य की मार्टिना नवरातिलोवा ओपन एरा में किसी ग्रैंड स्लैम के फाइनल में पहुँचने वाली सबसे उम्रदराज़ खिलाड़ी थी जो अपना दसवां विंबलडन खिताब जीतने का दावा पेश कर रहीं थीं। उनके सामने थीं 22 वर्षीया स्पेन की कोंचिता मार्टिनेज़। कोंचिता ने नवरातिलोवा की हसरत पूरी नहीं होने दी। उन्होंने नवरातिलोवा को 6-4,3-6 ,6-3 से हराकर उनका सपना चूर चूर कर दिया।अनुभव पर युवा जोश भारी पड़ा था। आज एक बार फिर उसी सेंटर कोर्ट पर 37 वर्षीया अमेरिकी वीनस विलियम्स सबसे उम्रदराज़ खिलाड़ी के रूप में अपना छठवां विंबलडन खिताब जीत कर ना भुला देने वाली रोमानी दास्ताँ लिख देना चाहती थीं।उन्होंने अपना पिछला ग्रैंड स्लैम 9 साल पहले जीता था।उनके रास्ते में एक बाधा थी। एक बार फिर स्पेन की ही युवा 23 वर्षीया बाला गार्बिने मुगुरूजा।एक बार फिर किंवदंती बनाते बनते रह गयी। अनुभव जोश से हार गया और वीनस मुगुरुजा से। संयोग ये भी था कि मुगुरुजा के रेगुलर कोच सैम सुमिक विंबलडन में नहीं थे और उनकी कोच के रूप में काम कर रही थी कोंचिता। उस्ताद की निगेहबानी में शागिर्द उसी का कारनामा दोहरा रहा था। विंबलडन को एक नया चैम्पियन मिला और 'वीनस रोजवाटर डिश' चूमने वाले नए होठ और उठाने वाले दो हाथ। और हाँ ग्रैंड स्लैम के फाइनल में दोनों विलियम्स बहनों-सेरेना और वीनस को हारने वाली पहली खिलाड़ी भी। 
                    दरअसल ये मुकाबला दो आक्रामक शैली वाले दो खिलाड़ियों के बीच था। अंतर उम्र का था। जिस समय वीनस ने पहला विंबलडन जीता था उस समय मुगुरुजा मात्रा 6 साल की थीं। जिस खिलाड़ी को वो खेलता देखते बड़ी हुई थीं आज उनसे दो दो हाथ करने को तैयार थी।दोनों की ताक़त बेसलाइन से तेज आक्रामक वॉली थी हांलाकि दोनों ही नेट पर भी समान रूप से खेल को नियंत्रित करने में सक्षम। पहले सेट में दोनों में कड़ा संघर्ष हुआ भी। 4-4 गेम जीत कर दोनों बराबरी पर। वीनस ने अपनी पांचवी सर्विस बरकरार रखी और मुरगुजा की पांचवी सर्विस पर दो ब्रेक पॉइंट हासिल किए। यहां वीनस चूक गयीं। मौके का फ़ायदा नहीं उठा पाईं। मुगुरुजा ने ना केवल दोनों ब्रेक पॉइंट बचाए बल्कि पांचवां गेम जीत कर 5-5 की बराबरी की। इसके बाद मुरगुजा के शानदार वोली और फोरहैंड शॉट्स और उनकी चपलता का वीनस के पास कोई जवाब नहीं था। अगले दो गेम जीत कर पहला सेट 7-5 से अपने नाम किया बल्कि अगलेसेट में लगातार तीन बार वीनस की सर्विस ब्रेक कर 6-0 सेट जीतकर चैंपियनशिप अपने नाम की। 
                 निसंदेह इस जीत ने स्पेन वासियों की राफा की हार से मिली टीस को कुछ राहत पहुंचाई होगी। मुगुरुजा को बहुत बहुत बधाई। 






Thursday 13 July 2017

ये दिल





ये दिल



अक्सर 
तुम्हारे 
अहसासों की मखमली दूब पर
विचरते हुए
आँखों से फैले उम्मीद के नूर में 
मासूम खिलखिलाहट से निसृत राग भूपाली 
सुनते हुए 
होठों से झर कर 
यहां वहां बिखरे शब्दों के 
रेशमी सेमल फाहों को 
चुनने में दिन यूँ 
लुट जाता है
कि अभी तो बस एक लम्हा गुज़रा 
और रात घिर आई 
कि दिल के आसमां पर  
तारों से टिमटिमाते सपनों की 
महफ़िल सज गयी है 
ये नादाँ दिल है 
कि डूब डूब जाता है 
बार बार
यादों के समंदर में । 
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ये हसीं रात हो के ना हो 






ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...