Tuesday 29 August 2017

चश्मे का भार

       



    भ्रम 
            आसमाँ की ओर 
            थोड़ा उठा सा मुँह 
            उसका 
            ऐसे लगता मानो 
            दो कान 
            और एक नाक 
            चश्मे का भार 
            नहीं सँभाल पा रहे हैं 

   हक़ीक़त

            
            दरअसल ये उसका चश्मा नहीं 
            उसकी आँखों में 
            छलक छलक जाते 
            अनगिनत सपने हैं  
            जिन्हें संभालने के फेर में 
            ऊंचा हो जाता हैं मुँह 
            और छूट जाती हैं जमीं  
            कि ठोकर खाती है बार बार
            सपने बचाने की एवज में । 
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तो क्या दिखने वाला हमेशा सच नहीं होता ?





Monday 28 August 2017

विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप 2017

                       

विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप 2017
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कुछ मैचों को देखते हुए लगता है कि इसमें कोई हारा तो है ही नहीं,निर्णय हुआ ही कहाँ कि कौन श्रेष्ठ तो फिर ये ख़त्म क्यों हो गया,क्यों दो खिलाड़ी हाथ मिलाते हुए मैदान से विदा ले रहे हैं,एक मुस्कुराते चहरे और शहद से  मीठे पानी से डबडबाई आँखों के साथ तो दूसरा उदास चहरे और  खारे पानी में डूबी आँखें लिए।सच में,कुछ मैचों में  कोई हारता नहीं है।ऐसे में या तो दोनों खिलाड़ी जीतते हैं या फिर खेल जीतता है। कल रात जब ग्लास्गो के एमिरेट्स एरीना में विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप के महिला फाइनल में भारत के पुरसला वी सिंधु और जापान की नोजोमी ओकुहारा खेल रही थीं तो कुछ ऐसा ही घटित हो रहा था। रिकार्ड्स में भले ही ये दर्ज़ हो गया हो की इस मुक़ाबले में ओकुहारा ने सिंधु को 21-19,20-22,22-20 से हरा दिया, पर स्कोर देखेंगे तो पाएंगे कि ये मैच अधूरा रहा गया और अगली बार वे दोनों कोर्ट में जब भी आमने सामने होंगी तो ठीक वही से शुरू करेंगी जहाँ खेल कल रात अधूरा छोड़ा था।   
                       
                        सिंधु और ओकुहारा बीच खेला गया ये मुक़ाबला अविस्मरणीय था जो अब तक खेले गए बैडमिंटन के सबसे शानदार चुनिंदा क्लासिक मुकाबले में से एक होगा। और इस प्रतियोगिता का तो निसंदेह सर्वश्रेष्ठ मैच ही होगा। एक सौ दस मिनट तक चला ये मैच प्रतियोगिता के इतिहास का सबसे लंबा मैच था जिसमें बैडमिंटन खेल अपनी सम्पूर्णता के साथ मौजूद था। हर तरह का आक्रमण,हर तरह     

              रक्षण,हर तरह का शॉट,हर तरह की रणनीति,जोश,जूनून,जज़्बा,धैर्य,मानसिक संतुलन ,मानवीय क्षमता और कौशल,तनाव सब कुछ अपने उच्चतम स्तर पर। संघर्ष का बेजोड़ प्रदर्शन।एक-एक अंक के लिए अनथक संघर्ष।हार ना मानने का संकल्प।परिणामस्वरूप लम्बी लम्बी रैलियां।दूसरे गेम के अंतिम अंक के लिए संघर्ष तो अविश्वसनीय था। इस रैली में 73 शॉट्स लिए गए जिसमें  वो सब कुछ था जो बैडमिंटन में हो सकता है। जोरदार स्मैशेस,शानदार प्लेसिंग और कुछ अविश्वसनीय रिटर्न्स। केवल ये एक रैली किसी भी खिलाड़ी को  बैडमिटन का पूरा खेल सिखाने  के लिए शायद पर्याप्त हो। 
                       
                               अगर ये विश्व कप चीन के पराभव का विश्व कप था तो भारत के उभार का। पहली बार भारत ने इस प्रतियोगिता में दो पदक जीते। पिछले साल साइना ने सिल्वर मैडल जीता था। इस बार फिर शानदार प्रदर्शन कर सेमीफाइनल  पहुंची  कांस्य पदक पक्का किया। किदाम्बी भले ही पदक नहीं जीत पाए पर उनका प्रदर्शन उम्मीद जगाता है। निसंदेह आने वाले समय में बैडमिंटन में भारत बड़ी ताक़त होगी। इस बार पोडियम पर दो भारतीय खिलाड़ी थे। ये पहली बार था। और ये उम्मीद जगाता है।  










Thursday 24 August 2017

विदा रूनी




विदा रूनी

                 इंग्लैंड के स्टार फ़ुटबाल खिलाड़ी और देश के लिए सर्वाधिक गोल करने वाले फॉरवर्ड वायने रूनी ने जब कल अचानक अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं को विदा कह दिया,बावजूद इसके कि टीम मैनेजर गेरेथ साउथगेट ने कहा कि आपको माल्टा और स्लोवाकिया के विरुद्ध होने वाले विश्व कप क्वालीफायर मैचों के लिए टीम में शामिल किया जा रहा है, तो सबसे पहले यही बात दिमाग में आई कि क्या आप भारत में इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि टीम मैनेजर कहे आपकी टीम को ज़रुरत है और आप अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं को विदा कह दें। और वो भी इसलिए कि आप को लगने लगे कि आप अपने चयन के साथ न्याय नहीं कर सकते और अब अपना सौ फीसदी नहीं दे सकते। यहां तो खिलाड़ी उस समय तक खेलते रहते हैं जब तक उन्हें प्रबंधन द्वारा कह नहीं दिया जाता कि आप सम्मानपूर्वक विदा ले लीजिये या फिर उन्हें धकिया कर बाहर ही नहीं कर दिया जाता। सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं हर क्षेत्र में यही हाल है। अब सिनेमा को लीजिये। पचास के ऊपर हुए अभिनेता भी तब तक रोमांटिक युवा किरदार निभाना नहीं छोड़ते जब तक जनता उनकी फिल्मों को धोबी पछाड़ दाँव लगाकर मिट्टी नहीं सुंघा देती। 
                                               31 वर्षीय रूनी भले ही आपको लीजेंड ना लगे। भले ही वो एलन शीयरर,गैरी लिनेकर,बॉबी चार्लटन,शिल्टन या डेविड बेकहम जैसा महान खिलाड़ी ना लगे। पर सच्चाई ये है कि वो इंग्लैंड की तरफ से खेलने वाला सबसे शानदार खिलाड़ी था जिसने देश के लिए 119 मैचों में से 71 जीते 29 ड्रा किए और 19 में हारे। इन मैचों में कुल 53 गोल किए।इंग्लैंड के लिए रिकार्ड सबसे ज़्यादा। 2003 में जब वो ऑस्ट्रेलिया के विरूद्ध मैदान में उतरा तो 17 साल और 111 दिन का देश के लिए खेलने वाला सबसे कम उम्र का खिलाड़ी था। अगले साल युरो कप में खेला और बुलंदियों को छूने लगा। कहा जाता है अगर उसे क्वाटर फाइनल में चोट ना लगी होती तो इंग्लैंड उस साल यूरो कप विजेता होता। उसके खेल में शक्ति और कला का बेहतरीन संगम था। वो निर्द्वन्द होकर खेलता था। उसने ब्रिटेन और यूरोप के सभी खिताब जीते। लेकिन ये उसकी सबसे बड़ी त्रासदी है कि वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर सका।दरअसल उसने तीन विश्व कप के 11 मैचों के केवल एक गोल किया। 2014 में ब्राज़ील में पैराग्वे के खिलाफ।यही वो एक वजह है वो महान ब्रिटिश खिलाड़ी चार्लटन जिसके नाम एक विश्व कप है से एक पायदान नीचे खड़ा दिखायी देता है। 
                        भले ही उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर वो प्रसिद्धि ना मिली हो जिसकी हक़दार उसकी प्रतिभा थी पर ये तय है कि वो ब्रिटेन की ओर से खेलने वाला सबसे शानदार खिलाड़ियों में शुमार रहेगा। 2018 में रूस में तुम्हारी कमी महसूस होगी और तुम शिद्दत से याद आओगे। विदा रूनी।  






          

Sunday 6 August 2017

एथलेटिक्स का शुक्र तारा


एथलेटिक्स का शुक्र तारा
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ये खेल जगत का और विशेष रूप से ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं का बहुत ही अहम् अवसर था।कल यानी 5 अगस्त 2017 का दिन। समय रात्रि पौने दस बजे। स्थान इंग्लैंड की राजधानी का लन्दन स्टेडियम का ट्रैक था। आयोजन विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप। ये बहुत ही भावुक क्षण थे।ट्रैक की 8 लेन में 8 धावक जिनमें से लेन न.4 पर अपनी चिर परिचित हरी पीली पोशाक में जमैका का उसैन बोल्ट था। हमारे समय का ये महानतम एथलीट अपनी अंतिम दौड़ के लिए ट्रैक पर था। स्टेडियम में मौज़ूद 56 हज़ार दर्शकों इस मौके को स्वर्णिम विदाई में परिवर्तित होते देखना चाहते थे। गेट सेट गो और धाँय की आवाज़ हुई ... एक दो तीन चार पांच छह सात आठ नौ और ये दस। दसवें सेकेण्ड के होते होते स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया।ज़बरदस्त उभरता शोर धाम सा गया था। एक कॉमिक चाहना ट्रैजिक वास्तविकता में जो तब्दील हो रही थी। पिछले एक दशक से जीत का पर्याय विश्व का सबसे तेज धावक जो जून 2013 रोम डायमंड लीग  के बाद से  45 दौड़ों में अजेय धावक अंतिम बाज़ी में पिछड़ कर तीसरे स्थान पर था। शायद स्टेडियम की फ़िज़ा में ये ग्रीक प्रभाव ही रहा होगा कि उसैन बोल्ट की ये कहानी भी ग्रीक ट्रेजडियों की तरह एक ट्रेजेडी में बदल रही थी ।निसंदेह विलेन अमेरिकी धावक जस्टिन गैटलिन था जो दो बार डोप टेस्ट में फेल  हो जाने के बाद दो बार प्रतिबंधित हो चुका था। और अब यहाँ उसने ये 100 मीटर रेस जीतकर विदाई पार्टी में विघ्न डाल दिया। उसने बोल्ट को सेकंड के सौवें हिस्से और उसी के देशवासी कोलमैन ने सेकंड के तीन सौवें हिस्से से पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी थी।विलेन का हीरो में रूपांतरित होना बाकी था। रेस ख़त्म होने के बाद विपरीत दिशा से आते बोल्ट के सामने ट्रैक पर ही गैटलिन घुटनों के बल ज़मीन पर बैठ गया और फिर बोल्ट के सम्मान में झुक कर उस महान खिलाड़ी को ट्रैक से विदाई दी। ये एक अद्भुत दृश्य था। वे दोनों मित्र कतई नहीं थे। बोल्ट ने गैटलिन को उठाया।अब दोनों गले मिल रहे थे। मित्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सन्देश दे रहे थे 'दोस्ती से बढ़कर कुछ नहीं'। 

         उसैन बोल्ट भले ही अपनी अंतिम रेस हर गया हो। लेकिन इससे उसकी महानता में इससे कोई कमी नहीं आनी है।दरअसल इस हार के बाद वो अमेरिकी बास्केटबाल खिलाड़ी माइकेल जॉर्डन और मुक्केबाज़ मुहम्मद अली  जैसे लीजेंड की श्रेणी में आ खड़ा  हुआ। 8 ओलम्पिक और 11 विश्व चैम्पियनशिप जीत उसके नाम हैं। वो पहली बार 2008 के ओलम्पिक से सुर्ख़ियों में आया और उसके बाद एक दशक तक लगभग अजेय बना रहा और गति का पर्याय भी। वो विश्व का सबसे तेज धावक था। 100 मीटर रेस में 9.58 सेकंड और 200 मीटर में 19.19 सेकेण्ड का रिकॉर्ड उसी के नाम है। वो हमारे समय का निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ एथलीट है। हालांकि हमारे समय में डेली थॉम्पसन,सेबेस्टियन को,अबेबे बिकिला,हेले गेब्रेसिलासी,माइकेल जॉनसन और कार्ल लेविस जैसे महान एथलीट हुए है पर शायद बोल्ट की उपलब्धियों तक नहीं पहुँचते सिवाय रूस के पोल वॉल्टर सेर्गेई बुबका को छोड़कर। 

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अब ट्रैक पर बोल्ट को दौड़ते हुए तो नहीं ही देख पाएंगे बल्कि बल्कि दोनों हाथों से आसमान की ओर इशारा करते  उनके ट्रेडमार्क विशिष्ट एक्शन को भी नहीं देख पाएंगे। वे हर दौड़ के बाद तीर कमान चलाने वाले अंदाज में आसमान की ओर अँगुली से इशारा करते मानों वे दुनिया को बता रहे हो इन तारों को देखो और उनमे सबसे चमकते शुक्र तारे को देखो। दरअसल मैं इस धरती का नहीं आसमाँ का तारा हूँ। और कहो तो एथलेटिक्स आसमाँ के असंख्य तारों के बीच सबसे ज़्यादा चमकने वाला शुक्र तारा हूँ। तो एथलेटिक्स जगत के इस शुक्र तारे को ट्रैक से अलविदा।   






ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...