Sunday 17 September 2017

एक अनिर्णीत संघर्ष जारी है



एक अनिर्णीत संघर्ष जारी है 


                       यकीन मानिए बैडमिंटन चीन और इंडोनेशिया के बिना भी उतना ही रोमांचक और शानदार हो सकता है जितना उनके रहते होता है। इस बात की ताईद वे सब कर सकते हैं जो एक बार फिर नोजोमी और पुरसला के खेल के जादू में डूबते उतराते अभी भी उनके शानदार खेल के हैंगओवर से बाहर नहीं आए होंगे। एक महीने के भीतर ये दूसरा अवसर था जब जब ये दोनों खिलाड़ी एक बार फिर कोर्ट में आमने सामने थे। फ़र्क़ केवल जगह का था। वे यूरोप की धरती छोड़ अपने महाद्वीप में आ चुकी थीं। इस बार संग्राम स्थल ग्लास्गो से बदल कर सियोल हो गया था।
                                  सियोल में मुकाबला ठीक वहीं से शुरू हुआ जहां ग्लास्गो में ख़त्म हुआ था। ग्लास्गो में स्कोर था 21-19,20-22,22-20 नोजोमी के पक्ष में।अब यहां सियोल में पहले अंक से ही तय हो गया था ये ग्लास्गो का मुकाबला आगे खेला जा रहा है। हर पॉइंट के लिए वैसा ही संघर्ष। पहले गेम के अंत में स्कोर 20-18 . नोजोमी के पास दो गेम पॉइंट। पर इस तरह के क्लासिक संघर्ष में चीज़े आसान नहीं होतीं।पुरसला ने लगातार चार अंक जीते और गेम 22-20 से अपने नाम किया। ये हार नोजोमी के लिए सोए शेर को जगाने जैसी थी। आखिर वो विश्व चैम्पियन थी। दूसरे गेम में उन्होंने नेट पर शानदार खेल दिखाया और कुछ शानदार स्मैशेस लगाए। ऐसा लगा पुरसला थक गई हैं। गेम 21-11 से नोजोमी ने जीता। दरअसल इन दो मैचों में ये एक गेम ऐसा था जो इस क्लासिक प्रतिद्वंदिता की धार को कुछ भोथरा कर रहा है,थोड़ा डाइल्यूट कर रहा था। लेकिन इस गेम को एक क्षणिक व्यवधान माना जाना चाहिए। शायद उस गेम में पुरसला अपनी शक्ति और अपनी एकाग्रता पुनः संचित कर रही थीं। तभी तो अगले गेम में पुरसला ने शुरू से ही बढ़त बना ली और अंत तक उसे कायम रखा। इस गेम में संघर्ष एक बार पुनः चरम पर था। फिर बड़ी बड़ी रैलियाँ खेली गयी। 19-15 के बाद वाले पॉइंट के लिए 56 शॉट्स की रैली हुई। एक बार बैडमिंटन का खेल ऊंचाइयों पर था। इस बार पुरसला ने धैर्य बनाये रखा और गेम 21-18 से जीत कर कोरियाई सुपर सीरीज का खिताब अपने नाम कर लिया।





            अगर विश्व कप वाला मुकाबला 110 मिनट चला तो ये भी 83 मिनट चला। निसंदेह ये विश्व कप जैसा मैच नहीं था फिर भी लगभग उस जैसा ही था-क्लासिक,शानदार ,संघर्षपूर्ण,रोमांचक जिसमें खेल ऊंचाइयों को छूता है। निसंदेह ये भी ग्लास्गो की तरह निर्णायक जीत नहीं है। ये एक शानदार नयी प्रतिद्वंदिता का आग़ाज़ भर है। अंजाम  देखना बाकी है। और अगली बार जब वे फिर कोर्ट में आमने सामने होंगी तो वो इस मैच का एक्सटेंशन भर होगा,इस अनिर्णीत संघर्ष का अगला पड़ाव भर। फिलहाल तो पुरसला की इस जीत और ग्लास्गो की हार के 'स्वीट रिवेंज' पर बल्ले बल्ले। 
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और हाँ आज चेन्नई में क्रिकेट की याद मत ही दिलाइयो 

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